नगर निगम के चुनाव हर 5 साल बाद होते है। इनके साथ नगर पालिका और नगर पंचायत के चुनाव भी होते है। इनका स्तर छोटा है। इनकी जानकारी हमारे लिए महत्वपूर्ण है
नगर निगम के चुनाव सभी शहरों में होते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि नगर निकाय चुनाव कब होते हैं और क्यों ? नहीं सोचा है तो कोई बात नहीं। हम आपको बता देते हैं कि सभी शहरों की जनसंख्या के आधार पर एक मानक तैयार किया गया है कि शहर में नगर निगम, नगर पालिका या नगर पंचायत बनेगी। इसी मानक को ध्यान में रखते हुए municipal corporation की स्थापना की जाती है। इसके बारे में आज हम विस्तारपूर्वक जानेंगे, जोकि सरकारी नौकरी की परीक्षा और आपके ज्ञान के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी।
What is municipal corporation election
नगर निगम का विकास 74वां संविधान संशोधन होने के बाद हुआ। यह शहरी स्थानीय स्वाशासन पर आधारित है। इस संशोधन के द्वारा यह नियम बनाया गया कि शहरों में जनसंख्या के आधार पर नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायत का निर्माण किया जायेगा। इस अधिनियम के तहत शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया था। यह संशोधन 1992 में संसद द्वारा पारित करके कानून का रूप दिया गया तथा इसे 1 जून 1993 को सर्वसम्मति से पूरे भारत में लागू कर दिया गया।
नगर निगम की स्थापना कब हुई
हमारे भारत देश में 247 तथा उत्तर प्रदेश में 17 नगर निगमों की व्यवस्था है। भारत में सबसे पहले इसकी स्थापना 1688 में मद्रास में हुई। उत्तर प्रदेश का सबसे पहला municipal corporation कानपुर में बना, जोकि 1959 में स्थापित किया गया।
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यूपी के म्युनिसिपल कारपोरेशन
आगरा
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अलीगढ़
गोरखपुर
गाजियाबाद
मेरठ
मथुरा
मुरादाबाद
सहारनपुर
शाहजहाँपुर
बरेली
झाँसी
कानपुर
लखनऊ
वाराणसी
प्रयागराज
फिरोजाबाद
नगर निगम में कितने सदस्य होते हैं
मेयर
मेयर का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। यह सीधे जनता के चुनाव (मतदान) द्वारा चुना जाते हैं। ये नगर निगम के मुख्य व्यक्ति तथा मुखिया होते हैं। यह शहर के प्रथम नागरिक होते हैं।
पार्षद (सभासद)
पार्षदों का चुनाव मेयर (महापौर) के साथ जनता के द्वारा ही कराया जाता है। इनका भी कार्यकाल 5 वर्ष का निर्धारित किया गया है। ये नगर निगम के सदस्य होते हैं। यह नगर निकाय के फैसलों में अपनी राय देने के लिए पूरी तरह से स्वतन्त्र होते हैं। ये अपने - अपने क्षेत्र या वार्ड में विकास कार्यों को कराते हैं।
अध्यक्ष
इनका भी कार्यकाल 5 वर्ष का ही होता है। इनका चुनाव पार्षदों, सभासदों तथा स्पीकरों द्वारा कराया जाता है। यह शहर के एजेंडों पर निर्णय लेते हैं।
मेयर इन कौंसिल
इनका कार्यकाल महापौर की स्वेच्छा पर आधारित होता है कि यह कब तक इस पद पर कार्यरत रहेंगे। ये नगर निकाय के सलाहकार होते हैं तथा मेयर के कार्यों में हाथ बंटाते हैं।
आयुक्त
यह भारतीय प्रशासनिक सेवा के सरकारी अधिकारी होते हैं। ये एक तरह से नगर निगम के प्रशासनिक मुखिया होते हैं। म्युनिसिपल कारपोरेशन के अधिकारों को सुचारु रूप से चलाना और उन्हें क्रियान्वित करना तथा सरकारी आदेशों को पूर्ण करवाना इन्ही के दायरे में आता है।
उपायुक्त
यह भी प्रशासनिक सेवा के सरकारी अधिकारी होते हैं। ये एक प्रकार से आयुक्त के सलाहकार भी माने जाते हैं। यह भी सरकारी नियमों का पालन करने में अपनी जिम्मेदारी पूर्ण रूप से निभाते हैं।
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म्युनिसिपल कारपोरेशन के कार्य
सड़कों पर स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था करना
बिल्डिंग बनाने की अनुमति प्रदान करना
वार्डों में साफ - सफाई के काम करवाना
सड़कों की सफाई व मरम्मत करवाना
सभी तरह के घरों की नम्बरिंग करना
जनता के लिए योजनाओं को शुरू करना
स्कूलों में मिड डे मील की व्यवस्था करना
जनता के लिए सार्वजनिक शौचालय बनवाना
सड़कों पर यातायात चिन्हो की व्यवस्था करना
गार्डन और बगीचों का रखरखाव करना
पानी सप्लाई की व्यवस्था को बरकरार रखना
नवजात बच्चों को जन्म - प्रमाण पत्र प्रदान करना
एंबुलेंस की सेवा को सही तरह से व्यवस्थित रखना
शहर में आग बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड की व्यवस्था करना
अब कुछ ही समय में नगर निगम चुनाव आ रहे हैं। आप भी इसमें बढ़ - चढ़कर हिस्सा ले और मतदान करके एक योग्य महापौर चुने और साथ ही अपने वार्ड के लिए एक अच्छे पार्षद या सभासद का चुनाव करें। अपने शहर का विकास करवाने के लिए आपको ज्यादा कुछ नहीं तो मतदान करके अपनी जिम्मेदारी तो निभानी होगी। नगर निगम की स्थापना जनता को सुविधा मुहैया कराने के लिए की गई है। आप इसका लाभ अवश्य लें।
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