मैंने एक बार अपने घर में कुछ काम करवाया तो मुझे मकान बनाने वाले कुछ मजदूर की जरुरत पड़ी। उस समय एक मकान बनाने वाला मिस्त्री और दो बेलदार (हेल्पर) काम
मैंने एक बार अपने घर में कुछ काम करवाया तो मुझे मकान बनाने वाले कुछ मजदूर की जरुरत पड़ी। उस समय एक मकान बनाने वाला मिस्त्री और दो बेलदार (हेल्पर) काम करने के लिए आये। वो दोनों बेलदार मजदूर आपस में पति - पत्नी थे। बेचारे दोनों आपस में मिलकर काम करते थे और काम को बड़ी ही लगन से करते थे। जो काम पत्नी न कर पाती उस काम को उसका बेलदार पति कर देता और काम का ज्यादा बोझ देखकर उसकी पत्नी अपने पति की मदद को हर वक्त तैयार रहती। मैं उन दोनों के प्यार को देखता तो मुझे बहुत खुशी होती कि दोनों में कितना प्रेम है।
इस तरह से लगभग एक महीने तक काम चला। मैं उन दोनों के पति - पत्नी प्रेम को देखकर खुशी महसूस करता। कभी - कभी मिस्त्री उन दोनों को काम के चक्कर में फाटकर लगाता तो बेचारे दोनों चुपचाप सुनते रहते। फिर मैं ही मिस्त्री को समझाता कि चलो जो हो गया सो हो गया अब काम करो।
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इस तरह एक महीने बाद जब मेरा पूरा हो गया तो थोड़ा सा साफ - सफाई का काम रह गया था तो मैंने मिस्त्री से काम की मना कर दी कि अब काम नहीं हैं, तुम अपने पैसे लो और जाओ। मैंने बेलदार की पत्नी से भी काम की मना कर दी। वो मान गई, लेकिन मैं उसके पति को दो दिन और काम पर बुलाना चाहता था तो उसके पति ने काम पर आने से मना कर दिया। वजह पूछी तो उसने कहा कि वो दोनों एक साथ ही काम करते हैं। अलग - अलग कभी काम नहीं करते हैं, चाहे दो दिन की बात तो या महीने भर की बात हो। उनके मुँह से ये बात सुनकर मैं चकित रह गया। क्या प्रेम है इन दोनों का। बेशक गरीब हैं मजदूरी करते है, लेकिन दोनों में प्यार बहुत है।
इन दोनों के प्यार को देखकर मैंने दोनों को ही काम पर बुला लिया। फिर दो दिन के बाद इन दोनों को काम के पैसे दिए और इनको 100 रुपये और एक्स्ट्रा दिए ये कहकर कि तुमने हमारा काम बहुत ही मेहनत और लगन से किया है। ये उसका इनाम है। ये सुनकर दोनों बहुत खुश हुए, उनके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ पड़ी। दोनों मुझे और मेरे परिवार को दुआएं देने लगे। 100 रुपये लेकर दोनों एक - दूसरे का हाथ पकड़कर एक साथ चले गये। 100 रुपये देने की एक वजह ये भी थी कि जब कल उनके पास काम नहीं होगा तो ये पैसे उनके काम आएंगे। मैंने तो ये मान लिया कि मकान बनाने में 100 रुपये ज्यादा खर्च हो गये।
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निष्कर्ष (Conclusion)
इतना कुछ समझने के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि हमें दूसरों की भावनाओं की कद्र करनी चाहिए। इंसान चाहे गरीब हो या अमीर हमें उसके अच्छे विचारों की कद्र करनी चाहिए और उसके स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुँचानी चाहिए। मैंने उन गरीब मजदूर पति - पत्नी में वो प्यार देखा जो मैं अमीर घरानो में नहीं पाता हूँ। इसलिए मैंने उसे 100 रुपये ज्यादा देकर उसके स्वाभिमान की इज्जत की। पैसे ज्यादा देने का एक दूसरा कारण यह भी था कि अब वो दोनों मेरे घर से काम खत्म करके जा रहे हैं। पता नहीं उन्हें अब कितने दिन बाद काम मिले तो मेरे ये एक्स्ट्रा रुपये उन दोनों के कुछ काम आ सके।
एक बात हमेशा ध्यान रखे कि जब भी आप किसी गरीब बेबस मजदूर से कोई काम करवाये तो पैसों के मामले में उसका दिल कभी दुखी मत करना। पैसे 10 की जगह 20 खर्च हो जाये, लेकिन उस गरीब को खुश करके भेजना। ऐसा करने से वो जो दुआएं देंगे तो वो कहीं न कहीं आपको फायदा पहुंचाएंगी। इससे आपकी सफलता के रास्ते भी खुलेंगे।
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